रविवार, अप्रैल 12, 2009

शरद कोकास की सुख दुःख की कवितायें

हजार हाथ थे सुख के
जिनसे वह हजारों को
दुलार सकता था
दुःख के पास थी फकत दो ऑंखें
जिनसे वह करोड़ों को देखता
और दुखी कर देता *******

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