शनिवार, सितंबर 26, 2009

हम तो कविताओं के ब्लॉग की ओर झांकते भी नहीं..

जया जादवानी की कविताओं पर ललित शर्मा ने कहा इन कविताओं में बहुत गहराई है । रंजना के लिये इस से अधिक एक औरत का सच कुछ नहीं हो सकता । विपिन बिहारी गोयल , राज भाटिया , वन्दना , अजेय , मयूर , चन्द्रमोहन गुप्ता , हरकीरत हक़ीर , गिरीश पंकज , चन्दन कुमार झा , महफूज़ अली , सुमन  और अदा को यह कवितायें बेहद पसन्द आईं । वाणी गीत ने कहा '" सभी कवितायेँ लाजवाब हैं ...कुछ सम्मानित ब्लोगर्स बहुत अकड़ कर कहते रहे हैं..हम तो कविताओं के ब्लॉग की ओर झांकते भी नहीं.. यदि महिलाएं सिर्फ ऐसी कवितायेँ ही लिख सकती हैं ...तो बेहतर होगा की वे कविताओं के सिवा और कुछ लिखें भी नहीं ...महज कुछ पंक्तियों में इतनी बेहतर अभिव्यक्ति लेखन की किस विधा में होगी ..| मुझे नहीं पता आप किन सम्मानित ब्लॉगर्स के बारे में कह रही हैं ,मेरे ब्लॉग पर तो सारे कविता प्रेमी ब्लॉगर्स आते हैं । उनके सहित मैं आप सभी का हृदय से आभारी हूँ । “ संजीव तिवारी और आशीष खंडेलवाल ने इन कविताओं की प्रस्तुति पर आभार व्यक्त किया है । शोभना चौरे ने कहा कि स्त्री की ज़िन्दगी रोटी के इर्द गिर्द ही घूमती है ।इसी विचार पर केन्द्रित है आज अष्टमी पर कथाकार और कवयित्री मिता दास की यह कविता जो यह बताती है कि एक स्त्री के लिये ग्रहस्थी सम्भालते हुए कविता कहानी लिखना कितना कठिन काम है ।-          शरद कोकास 
नवरात्रि पर विशेष कविता श्रंखला-समकालीन कवयित्रियों द्वारा रचित कवितायें आठवाँ दिन                                     रसोई में स्त्री                                                         


कितनी ही रचनायें 
नमक दानी के सिरहाने 
दम तोड़ देती हैं
रसोई में


खाना बनाती स्त्री 
जब शब्द गढ़ती है 
हाथ हल्दी से पीले हो जाते हैं 
आटा गून्धते हुए 
मसालों की गन्ध से घुंघुवाती मिलती है

उस दिन कहानी के क्लाइमेक्स पर थी
फ्रिज खोलकर टमाटर निकाले 
शब्द दौड़कर
जा बैठे फ्रिज में रखे दही के कटोरदान में


एक दिन तो हद हो गई 
अदरक का टुकड़ा पीसते पीसते
पीस डाले सारे बेहतरीन शब्द
और कविता गढ़ते गढ़ते
खुद कविता हो गई ।

-मिता दास