शुक्रवार, सितंबर 21, 2012

1989 की कवितायें - धुएँ के खिलाफ

एक कवि को कोई हक़ नहीं कि वह भविष्यवाणी करे , लेकिन कवि पर तो क्रांति का भूत सवार है , वह दुर्दम्य आशावादी है , उसे लगता है कि स्थितियाँ लगातार बिगड़ती जायेंगी और फिर एक न एक दिन सब ठीक हो जायेगा । देखिये इस कवि ने भी 23 साल पहले ऐसा ही कुछ सोचा था ...


58 धुएँ के खिलाफ

अगली शताब्दि की हरकतों से
पैदा होने वाली नाजायज़ घुटन में
सपने बाहर निकल आयेंगे
परम्परिक फ्रेम तोड़कर
कुचली दातून के साथ
उगली जायेंगी बातें
मानव का स्थान लेने वाले
यंत्र मानवों की
सुपर कम्प्यूटरों की
विज्ञान के नये मॉडलों
ग्रहों पर प्लॉट खरीदने की
ध्वनि से चलने वाले खिलौनों की

मस्तिष्क के खाली हिस्से में
अतिक्रमण कर देगा
आधुनिकता का दैत्य
नई तकनीक की मशीन पर
हल्दी का स्वास्तिक बनाकर
नारियल फोड़ा जायेगा

ऊँची ऊँची इमारतों से
नीचे झाँकने के मोह में
हाथ –पाँव तुड़वा कर
विपन्नता पड़ी रहेगी
किसी झोपड़पट्टी में
राहत कार्य का प्लास्टर लगाये

कहीं कोई मासूम
पेट से घुटने लगा
नींद में हिचकियाँ ले रहा होगा
टूटे खिलौनों पर शेष होगा
ताज़े आँसुओं का गीलापन

मिट्टी के तेल की ढिबरी से उठता धुआँ
चिमनियों के धुयें के खिलाफ
सघन होने की राह देखेगा ।
                        शरद कोकास